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लघु कथा लेखन का प्रारूप व उदाहरण, Format of Story writing in Hindi

Story Writing in Hindi – इस लेख में हम आपको 10वीं कक्षा के लेखन कौशल के विषय ‘कहानी लेखन (लघु कथा लेखन)’ के बारे में बता रहे हैं। आशा करते हैं कि हमारा यह लेख आपकी ‘कहानी लेखन (लघु कथा लेखन)’ सम्बंधित सभी कठिनाइयों को दूर करने में सहायक सिद्ध होगा।

भारत में विभिन्न प्रतियोगिताओं या परीक्षाओं में कहानी लेखन (लघु कथा लेखन) एक महत्वपूर्ण भूमिका रखता हैं। कहानी लेखन का विषय क्या हो और हमें किसी टॉपिक या विषय पर यदि कुछ लिखना हो तो हम किस प्रकार से कहानी लेखन का कार्य कर सकते हैं इसके लिए कुछ उदाहरणों से सिखने का प्रयास कर सकते हैं – जैसे लालची राजा, सच्चा लकड़हारा, दया का शुभ फल, पिता और पुत्र, मित्र की सलाह, मक्खी का लोभ, मेल की शक्ति, सच्ची जित, मूर्खराज, खरगोश और मेढक, बादशाह और माली, नेकी का बदला, उपकार का बदला, लालची बन्दर आदि।

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नई शिक्षा पद्धति के अनुसार कहानी लेखन –

नई शिक्षा पद्धति के अनुसार कहानी लेखन के स्वरूप में भी बदलाव किया गया है। इसके फलस्वरूप कहानी चार प्रकार से पूछी जा सकती है, ये प्रकार निम्नलिखित हैं –

  1. लघु कथा से सम्बंधित अधिक-से-अधिक मुद्दे दे कर।

2. कहानी से सम्बंधित कुछ मुख्य मुद्दे दे कर।
3. कहानी की शुरुआत की कुछ पंक्तियाँ दे कर।
4. कहानी की अंतिम पंक्तियाँ दे कर।
नोट –
कहानी लेखन (लघु कथा लेखन) कक्षा 10 वीं के लेखन कौशल के भाग-इ में पूछा जाना वाला प्रश्न है। यह प्रश्न 5 अंकों के लिए पूछा जाता है। इस प्रश्न में आपको विकल्प दिए जाते हैं और आपको अपनी इच्छा से कोई एक विकल्प चुन कर लिखना होता है। इस प्रश्न में शब्दों की सीमा सीमित रखी जाती है जो 100 से 120 शब्दों की होती है।

‘कहानी लेखन (लघु कथा लेखन)’

कहानी-लेखन की परिभाषा – Story Writing in Hindi

जीवन की किसी एक घटना के रोचक वर्णन को ‘कहानी’ कहते हैं।

कहानी सुनने, पढ़ने और लिखने की एक लम्बी परम्परा हर देश में रही है; क्योंकि यह सबके लिए मनोरंजक होती है। बच्चों को कहानी सुनने का बहुत चाव होता है। दादी और नानी की कहानियाँ प्रसिद्ध हैं। इन कहानियों का उद्देश्य मुख्यतः मनोरंजन होता है किन्तु इनसे कुछ-न-कुछ शिक्षा भी मिलती है।

कहानी लिखना एक कला है। हर कहानी-लेखक अपने ढंग से कहानी लिखकर उसमें विशेषता पैदा कर देता है। वह अपनी कल्पना और वर्णन-शक्ति से कहानी के कथानक, पात्र या वातावरण को प्रभावशाली बना देता है। लेखक की भाषा-शैली पर भी बहुत कुछ निर्भर करता है कि कहानी कितनी अच्छी लिखी गई है।

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लघु कथा लेखन के प्रकार – Types of Story Writing in Hindi

आकार की दृष्टि से ये कहानियाँ दोनों तरह की हैं- कुछ कहानियाँ लम्बी हैं जबकि अन्य कुछ कहानियाँ छोटी। आधुनिक कहानी मूलतः छोटी होती है।

कहानी लिखते समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान रखना चाहिए

(i) दी गई रूपरेखा अथवा संकेतों के आधार पर ही कहानी का विस्तार करना चाहिए।

(ii) कहानी में विभिन्न घटनाओं और प्रसंगों को संतुलित विस्तार देना चाहिए। किसी प्रसंग को न बहुत अधिक संक्षिप्त लिखना चाहिए, न अनावश्यक रूप से बहुत अधिक बढ़ाना चाहिए।

(iii) कहानी का आरम्भ आकर्षक होना चाहिए ताकि कहानी पढ़ने वाले का मन उसे पढ़ने में लगा रहे।

(iv) कहानी की भाषा सरल, स्वाभाविक तथा प्रभावशाली होनी चाहिए। उसमें बहुत अधिक कठिन शब्द तथा लम्बे वाक्य नहीं होनी चाहिए।

(v) कहानी को उपयुक्त एवं आकर्षक शीर्षक देना चाहिए।

(vi) कहानी को प्रभावशाली और रोचक बनाने के लिए मुहावरों व् लोकोक्तियों का प्रयोग भी किया जा सकता है।

(vii) कहानी हमेशा भूतकाल में ही लिखी जानी चाहिए।

(viii) कहानी का अंत सहज ढंग से होना चाहिए।

(ix) अंत में कहानी से मिलने वाली सीख स्पष्ट व् संक्षिप्त होनी चाहिए।

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कहानी लेखन की प्रमुख विशेषताएँ – Key feature of Story Writing

कहानी लेखन की निम्नलिखित विशेषताएँ है-
(1) आज कहानी का मुख्य विषय मनुष्य है, देव या दानव नहीं। पशुओं के लिए भी कहानी में अब कोई जगह नहीं रही। हाँ, बच्चों के लिए लिखी गयी कहानियों में देव, दानव, पशु-पक्षी, मनुष्य सभी आते हैं। लेकिन श्रेष्ठ कहानी उसी को कहते है, जिसमें मनुष्य के जीवन की कोई समस्या या संवेदना व्यक्त की गई होती है।

(2) पहले कहानी शिक्षा और मनोरंजन के लिए लिखी जाती थी, आज इन दोनों के स्थान पर कौतूहल जगाने में जो कहानी सक्षम हो, वही सफल समझी जाती है। फिर भी, मनोरंजन आज भी साधारण पाठकों की माँग है।

(3) आज का मनुष्य यह जानने लगा है कि मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता है, वह किसी के हाथ का खिलौना नहीं। इसीलिए आज की कहानियों का आधार मनुष्य के जीवन का संघर्ष है।

(4) आज की कहानी का लक्ष्य विभिन्न प्रकार के चरित्रों की सृष्टि करना है। यही कारण है कि आज कहानी में चरित्र-चित्रण का महत्त्व अधिक बढ़ा है।

(5) पहले जहाँ कहानी का लक्ष्य घटनाओं का जमघट लगाना होता था, वहाँ आज घटनाओं को महत्त्व न देकर मानव-मन के किसी एक भाव, विचार और अनुभूति को व्यक्त करना है। प्रेमचन्द ने इस सम्बन्ध में स्पष्ट लिखा है, ”कहानी का आधार अब घटना नहीं, अनुभूति है।”

(6) प्राचीन कहानी समष्टिवादी थी। सबके हितों को ध्यान में रखकर लिखी जाती थी। आज की कहानी व्यक्तिवादी है, जो व्यक्ति के ‘मनोवैज्ञानिक सत्य’ का उद्घाटन करती है।

(7) पहले की उपेक्षा आज की कहानी भाषा की सरलता पर अधिक बल देती है; क्योंकि उसका उद्देश्य जीवन की गाँठों को खोलना है।

(8) पुरानी कहानियों का अंत अधिकतर सुखद होता था, किन्तु आज की कहानियाँ मनुष्य की दुःखान्तक कथा को, उसकी जीवनगत समस्याओं और अन्तहीन संघर्षों को अधिक-से-अधिक प्रकाशित करती हैं।

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लघु कथा लेखन  की विधियाँ – Story Writing Format

कहानी का अधिकाधिक प्रचार-प्रसार होने के कारण छात्रों से भी आशा की जाती है कि वे भी इस ओर ध्यान दें और कहानी लिखने का अभ्यास करें; क्योंकि इससे उनमें सर्जनात्मक शक्ति जगती है। इसके लिए उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे चार विधियों से कहानी लिखने का अभ्यास करें
(1) कहानी की सहायता या आधार पर कहानी लिखना
(2) रूपरेखा के सहारे कहानी लिखना
(3) अधूरी या अपूर्ण कहानी को पूर्ण करना
(4) चित्रों की सहायता से कहानी का अभ्यास करना।

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(1) कहानी की सहायता या आधार पर कहानी लिखना –
मूल कहानी को ध्यान से पढ़कर कहानी लिखने का अभ्यास किया जाना चाहिए। इसके लिए आवश्यक है कि कहानी को खूब ध्यान से पढ़ा जाए, उसकी प्रमुख बातों या चरित्रों या घटनाओं को अलग कागज पर संकेत-रूप में लिख लिया जाए और फिर अपनी भाषा में मूल कहानी को इस तरह लिखा जाए कि कोई भी महत्त्वपूर्ण बात या घटना या प्रसंग छूटने न पाए। इस प्रकार की कहानी लिखते समय छात्रों को निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए-
(i) कहानी का आरम्भ आकर्षक ढंग से हो
(ii) संवाद छोटे-छोटे हों
(iii) कहानी का क्रमिक विकास हो(iv) उसका अन्त स्वाभाविक हो
(v) कहानी का शीर्षक मूल कहानी का शीर्षक हो
(vi) भाषा सरल और सुबोध हो।
इनके आधार पर छात्रों से कहानी लिखने का अभ्यास कराया जाना चाहिए।

(2) रूपरेखा (संकेतों) के सहारे कहानी लिखना –
रूपरेखा या दिए गये संकेतों के आधार पर कहानी लिखना कठिन भी है, सरल भी। कठिन इसलिए कि संकेत अधूरे होते हैं। इसके लिए कल्पना और मानसिक व्यायाम करने की आवश्यकता पड़ती है। सरल इसलिए कि कहानी के संकेत पहले से दिए रहते हैं। यहाँ केवल खानापुरी करनी होती है। लेकिन, इस प्रकार की कहानी लिखने के लिए कल्पना से अधिक काम लेना पड़ता है। ऐसी कहानी लिखने में वे ही छात्र अपनी क्षमता का परिचय दे सकते है, जिनमें सर्जनात्मक और कल्पनात्मक शक्ति अधिक होती है। इसके लिए छात्र को संवेदनशील और कल्पनाप्रवण होना चाहिए। एक उदाहरण इस प्रकार है-

संकेत

एक किसान के लड़के लड़ते, किसान मरने के निकट, सबको बुलाया, लकड़ियों को तोड़ने को दिया, किसी से न टूटा, एक-एक कर लकड़ियों तोड़ी, शिक्षा। उपर्युक्त संकेतों को पढ़ने और थोड़ी कल्पना से काम लेने पर पूरी कहानी इस प्रकार बन जाएगी-

एकता में बल –

एक था किसान। उसके चार लड़के थे। पर उन लड़कों में मेल नहीं था। वे आपस में बराबर लड़ते-झगड़ते रहते थे। एक दिन किसान बहुत बीमार पड़ा। जब वह मृत्यु के निकट पहुँच गया, तब उसने अपने चारों लड़कों को बुलाया और मिल-जुलकर रहने की शिक्षा दी।
किन्तु लड़कों पर उसकी बात का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। तब किसान ने लकड़ियों का गट्ठर माँगवाया और लड़कों को तोड़ने को कहा। किसी से वह गट्ठर न टूटा। फिर, लकड़ियाँ गट्ठर से अलग की गयीं।

किसान ने अपने सभी लड़कों को बारी-बारी से बुलाया और लकड़ियों को अलग-अलग तोड़ने को कहा। सबने आसानी से लकड़ियों को तोड़ दिया। अब लड़कों की आँखें खुलीं। तभी उन्होंने समझा कि आपस में मिल-जुलकर रहने में कितना बल है।

(3) अपूर्ण कहानी को पूर्ण करना

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