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Sameeksha / Alochna

  1. पाठ का उद्देश्य

इस इकाई के अध्‍ययन के उपरान्‍त आप

  • नई समीक्षा का वैशिष्ट्य जान सकेंगे।
  • नई समीक्षा की प्रमुख विशेषताओं के बारे में जानकारी प्राप्‍त करेंगे।
  • नई समीक्षा के प्रमुख चिन्तकों की रचना दृष्टि को समझ सकेंगे
  • आलोचना के क्षेत्र में नई समीक्षा का प्रभाव जानेंगे।
  1. प्रस्तावना

नई समीक्षा की शुरुआत पहले-पहल अंग्रेजी साहित्य में हुई। नई समीक्षा बीसवीं शताब्दी में आंग्ल–अमेरिकी साहित्य में आलोचना की एक प्रमुख प्रवृत्ति के रूप में उभरी। टी.एस. एलियट नई समीक्षा के जनक माने जाते हैं। सन् 1941 में प्रकाशित जॉन क्रो रैंसम की पुस्तक दी न्यू क्रिटिसिज्म से यह नाम आलोचना के क्षेत्र में रूढ़ हो गया।

 

नई समीक्षा में किसी रचना के ऐतिहासिक और सामाजिक पक्ष पर विचार करने को अनावश्यक माना गया। रचना से हटकर रचनाकार पर जोर देने का भी विरोध किया गया। टी.एस. एलियट का सुझाव था कि किसी रचना का मूल्यांकन उसके रचनाकार, रचना-समय और परिवेश को हटाकर किया जाना चाहिए। रचना के रूप और अन्तर्वस्तु का ही विश्‍लेषण होना चाहिए। इसमें साहित्येतर तत्त्वों से निरपेक्ष रहकर ‘कृति की आन्‍तरिक संहिति’ का विश्‍लेषण करना ही आलोचना का प्रमुख उद्देश्य था। रचना के रूप पर ज्यादा जोर देने का परिणाम यह हुआ कि नई समीक्षा नाम की आलोचना दृष्टि कलावाद का रूप धारण करने लगी।

 

नई समीक्षा का इतिहास टी.एस. एलियट के निबन्ध-संग्रह सेक्रेड वुड (सन् 1920) से आरम्भ हुआ। आइ.ए. रिचर्ड्स की पुस्तक प्रिन्‍सि‍पल्स ऑफ लिटरेरी क्रिटिसिज्म (1924) में भी नई समीक्षा के तत्त्व मौजूद हैं।

  1. मुख्य सिद्धान्त

नई समीक्षा से जुड़े सभी विद्वानों के सिद्धान्त एक समान नहीं हैं, किन्तु काव्य और उसकी समीक्षा से सम्बद्ध कतिपय मौलिक तथ्यों के विषय में वे प्रायः एकमत हैं। नई समीक्षा की प्रमुख विशेषताएँ निम्‍नलि‍खि‍त हैं :

  1. नई समीक्षा किसी रचना के रूप और अन्तर्वस्तु को अलग करके देखने का विरोध करती है। उसका मानना है कि रचना का रूप उसकी अन्तर्वस्तु से ही तय होता है।
  2. कविता पदार्थ है, विचार या भाव नहीं। वह अपने आप में एक विशिष्ट अनुभव है, जो अपने रूप के अनुभव से सर्वथा अभिन्‍न है।
  3. नैतिक, सामाजिक, ऐतिहासिक अथवा अन्य प्रकार की असम्बद्ध धारणाओं को बीच में लाकर इस अनुभव को अशुद्ध नहीं करना चाहिए।
  4. आलोचक का कर्तव्य-कर्म किसी कृति के समग्र रूप और अंगों के अन्तः सम्बन्धों का विश्‍लेषण कर उसकी जटिल संरचना का परीक्षण करना है ।
  5. कलाकृति का रूप ही समीक्षा का वास्तविक विषय है, और इस रूप की अपनी स्वतन्त्र सत्ता है – वह किसी अन्य अर्थ का वाहन मात्र नहीं है। अथवा यह कहना चाहिए की कलात्मक संरचना का समग्र अर्थ ‘रूप’ में ही निहित है।
  1. एलेन टेट की व्याख्या

    तनाव : ‘तनाव’ शब्द का प्रयोग एलेन टेट ने किया था। टेट ने अपने निबन्ध टेन्‍शन इन पोएट्री (कविता में तनाव) में इस शब्द की व्याख्या की है। उन्होंने इस शब्द का लाक्षणिक प्रयोग सामान्य रूप में न कर विशेष सीमित अर्थ में किया है। शब्द के अर्थ-संकेत दो प्रकार के होते हैं– एक अन्तर्मुख और दूसरे बहिर्मुख। अन्तर्मुख प्रयोग में शब्द के अर्थ-संकेत किसी भावना या विचार के प्रतीक मात्र होते हैं– बाह्य जगत के गोचर पदार्थों के साथ उनका प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं होता– अर्थात शब्द के प्रचलित वाच्यार्थ में और काव्यगत अभीष्ट अर्थ में युक्तियुक्त सम्बन्ध नहीं रहता।

 

टेट कहते हैं की काव्यगुण वहीं होता है, जहाँ शब्दों के बहिर्मुख और अन्तर्मुख शब्द-संकेतों में सन्तुलन होता है। बहिर्मुख और अन्तर्मुख शब्द-संकेतों में यह सन्तुलन ही ‘तनाव’ कहलाता है। उदाहरण के लिए कविता में अमूर्त्त भावना के लिए मूर्त्त बिम्ब का प्रयोग। जब कविता में अमूर्त्त भावना के लिए मूर्त्त बिम्ब का प्रयोग किया जाता है तो विरोधाभास उत्पन्‍न होता है। परन्तु जब कविता में इस विरोधाभास का उपयोग ऐसे होता है कि अभीष्ट अर्थ बाधित नहीं होता, बल्कि अन्तर्मुख और बहिर्मुख अर्थ-संकेतों के पूर्ण सन्तुलन या तादात्म्य के कारण और भी चमत्कृत हो जाता है, तब काव्य-गुण उत्पन्‍न होता है। यह सन्तुलन या तादात्म्य ही तनाव है और यही कवित्व का सार है।

 

काव्य-गुण के विषय में टेट के विचारों को सारांशत: निम्‍नवत रखा जा सकता है–

  1. काव्य का आधार भाव या विचार नहीं है, भाषा है। किसी कवि का दर्शन कुछ भी हो, पाठक तो उसे उसकी भाषा के द्वारा ही जानता है। उसके कथ्य की उचित सीमा उसकी भाषा है।
  2. काव्य भाषा का मुख्य गुण है उसका तनाव या सन्तुलन।
  3. स्वछन्दतावादी या प्रतीकवादी या आवेगप्रधान कविता में मनोराग का आवेश प्रमुख हो जाता है और कवि-कर्म गौण।
  4. अलंकृत कविता में रागात्मक संस्कार जगाने की अपेक्षा लक्षित बिम्बों की सृष्टि करना ही कवि का उद्देश्य होता है। यहाँ शब्दों का प्रयोग नियत एवं स्थिर होता है और अपने बाहर के गोचर पदार्थों के साथ उनका प्रत्यक्ष सम्बन्ध रहता है। इस कविता की भाषा मूर्त्त होती है।
  5. उत्तम काव्य की सृष्टि के लिए यद्यपि उपर्युक्त दोनों ही प्रवृत्तियाँ अनुपयुक्त हैं, फिर भी अलंकारवादी कविता की भाषा अपने मूर्त्त रूप के कारण अधिक काव्योचित है।
  6. स्वछन्दतावादी काव्य शैली और अलंकृत काव्य शैली के विषय में कोई सामान्य निर्णय नहीं दिया जा सकता–अर्थात यह नहीं कहा जा सकता कि इनमें से कोई एक स्वभावतः उत्कृष्ट और दूसरी निकृष्ट होती है। दोनों के ही उत्कृष्ट अंश श्रेष्ठ काव्य के अन्तर्गत आते हैं और दोनों में ही अपनी-अपनी अपूर्णताएँ हैं।
  7. काव्य का उत्तम रूप सीमान्तवर्ती यानी अतिवादी प्रवृत्तियों में नहीं बल्कि मध्यवर्ती अर्थातसन्तुलित शैली में ही उपलब्ध होता है।
  8. अन्त में, दबी ज़बान में, टेट यह स्वीकार करते हैं कि शेक्सपियर की कविता की अपेक्षा डन की कविता में उपर्युक्त काव्यगुण अधिक है।
  1. विलियम एम्पसन और अनेकार्थता का सिद्धान्त

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